बद्रीनाथ मन्दिर

Badrinath Temple

बद्रीनाथ मन्दिर, भगवान विष्णु के सबसे प्रसिद्ध मंदिरो में से एक है। यह मंदिर भारतीय राज्य उत्तराखण्ड के चमोली जिले में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित है। सनातन धर्म में वर्णित सर्वाधिक पवित्र स्थानों, चार धामों में से एक है इसके अतिरिक्त छोटे चार धामों में भी गिना जाता है। मंदिर को बद्री-विशाल और बद्रीनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। मन्दिर के नाम पर ही इसके आस पास बसे नगर को भी बद्रीनाथ कहा जाता है। बद्रीनाथ मन्दिर को निकटस्थ अन्य चार मन्दिरों (योगध्यान-बद्री, भविष्य-बद्री, वृद्ध-बद्री और आदि बद्री) के साथ जोड़कर, पूरे समूह को “पंच-बद्री” के रूप में जाना जाता है। बद्रीनाथ मंदिर हिमालय पर्वतमाला के ऊँचे शिखरों के मध्य, गढ़वाल क्षेत्र में, समुद्र तल से लग-भग 3,133  मीटर (10,279 फ़ीट) की ऊँचाई पर स्थित है। चरम मौसम की स्थिति के कारण मन्दिर वर्ष के छह महीने (अप्रैल के अंत से लेकर नवम्बर की शुरुआत तक) के लिए ही खुलता है।

बदरीनाथ मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार रंगीन और भव्य है जिसे सिंहद्वार के नाम से जाना जाता है। मंदिर लगभग 50 फीट लंबा है, जिसके शीर्ष पर एक छोटा गुंबद है, जो सोने की छत से ढका हुआ है। बदरीनाथ मंदिर के मुख्य दरवाजे पर, स्वयं भगवान की मूर्ति के ठीक सामने, भगवान बदरीनारायण के वाहन पक्षी गरुड़ की मूर्ति विराजमान है, जो हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे हैं। मंदिर की दीवारें और स्तंभ जटिल नक्काशी से ढके हुए हैं। बदरीनाथ मंदिर को तीन भागों में विभाजित किया गया है :- गर्भ-गृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप।

गर्भ-गृह में भगवान बदरी नारायण, कुबेर, नारद ऋषि, उद्धव, नर और नारायण हैं। विशेष रूप से आकर्षक भगवान बदरीनाथ की एक मीटर ऊंची छवि है, जो शालिग्राम के काले पत्थर में बारीकी से तराशी गई है। दर्शन मंडप में भगवान बदरी नारायण एक भुजा में शंख और दूसरी में चक्र धारण किये हैं और अन्य दो भुजाएँ योग मुद्रा में हैं। सभा मंडप में सभी तीर्थयात्री एकत्रित होते हैं।

पौराणिक कथाओ के अनुसार, आदि शंकराचार्य जी ने अलकनंदा नदी में शालिग्राम पत्थर से बनी भगवान बदरीनारायण की एक काले पत्थर की मूर्ति की खोज की थी। उन्होंने मूल रूप से मूर्ति को तप्त कुंड (गर्म झरने) के पास एक गुफा में स्थापित किया था। सोलहवीं शताब्दी में, गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को मंदिर के वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित किया था।

बद्रीनाथ मंदिर का नाम स्थानीय शब्द बद्री से लिया गया है, जो एक प्रकार का जंगली बेर है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु यहां तपस्या में बैठे थे, उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी ने एक बेर के पेड़ का रूप धारण किया और उन्हें भारी हिमपात और सूर्य से छायांकित किया। जब भगवान विष्णु ने अपनी तपस्या पूरी की और देखा कि देवी लक्ष्मी ने उन्हें कैसे छायांकित किया, तो उन्होंने देवी लक्ष्मी को वरदान दिया कि उनकी भी यहां पूजा की जाएगी और इस स्थान को बद्री-नाथ का नाम दिया।

यह भी कहा जाता है कि, जब बौद्ध धर्म हिमालय की सीमा में फैल रहा था और चिंता थी कि हिंदू धर्म अपना महत्व और गौरव खो रहा है। तब श्री आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म की महिमा को वापस लाने के लिए हिमालय में भगवान शिव और विष्णु के मंदिरों का निर्माण कराया। यह स्थान पांडव भाइयों से भी संबंधित है, पांडव भाई द्रौपदी के साथ बद्रीनाथ के दर्शन करने के बाद स्वर्गारोहिणी के अपने अंतिम तीर्थ यात्रा के लिए गए थे।

स्कंद पुराण के अनुसार, “स्वर्ग में, पृथ्वी पर और नरक में कई पवित्र मंदिर हैं, लेकिन बदरीनाथ जैसा कोई मंदिर नहीं है।”

वामन पुराण के अनुसार, ऋषि नर और नारायण ‘भगवान विष्णु के पांचवें अवतार’ ने यहां तपस्या की थी।

कपिल मुनि, गौतम, कश्यप जैसे महान ऋषियों ने यहां तपस्या की है, भक्त नारद ने मोक्ष प्राप्त किया और भगवान कृष्ण को इस क्षेत्र से अधिक लगाव था। श्री आदि शंकराचार्य, श्री रामानुजाचार्य, श्री माधवाचार्य, श्री नित्यानंद जैसे धार्मिक विद्वान यहां पर ज्ञान और चित्त की शान्ति की प्राप्ति के लिए आए थे।

बद्रीनाथ मंदिर, हरिद्वार से 315 किलोमीटर और दिल्ली से 530 किलोमीटर दूर स्थित है, नज़दीकी हवाई अड्डा जोली ग्रान्ट, देहरादून है।

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