किन्नर कैलाश यात्रा
जहाँ हिमालय की ऊँचाईयाँ आकाश से बातें करती हैं, और हर कदम पर भगवान शिव का आशीर्वाद महसूस होता है — वह स्थान है किन्नर कैलाश।
किन्नर कैलाश यात्रा केवल एक ट्रेक नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है। यह यात्रा हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित शिवजी के पवित्र लिंग स्वरूप दर्शन के लिए की जाती है। समुद्र तल से लगभग 4,800 मीटर (19,850 फीट) की ऊँचाई पर स्थित किन्नर कैलाश शिवलिंग हर साल हज़ारों श्रद्धालुओं और ट्रेकर्स को अपनी ओर आकर्षित करता है।

किन्नर कैलाश पर्वत को लेकर एक प्राचीन कथा प्रचलित है, जो इस स्थान की आध्यात्मिक महत्ता को दर्शाती है।
पुराणों के अनुसार, एक समय जब राक्षसों का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया था, तब भगवान शिव ने किन्नर कैलाश पर्वत को अपनी तपस्या स्थली के रूप में चुना। कहते हैं कि इसी स्थान पर भगवान शिव और माता पार्वती ने वर्षों तक साधना की थी। यह भी मान्यता है कि एक राक्षस ने किन्नौर क्षेत्र पर कब्जा करने का प्रयास किया था। तब शिवजी ने इसी पर्वत की चोटी से अपने त्रिशूल को आकाश में घुमाया, जिससे बिजली की तेज़ गड़गड़ाहट हुई और वह राक्षस वहीं राख में बदल गया। इस घटना के बाद, किन्नौर के लोग इस पर्वत को “जीवंत शिव” के रूप में पूजने लगे।
शिवलिंग की ऊँचाई लगभग 80 फीट मानी जाती है, और यह एक विशाल चट्टान के रूप में खड़ा है। सबसे अद्भुत बात यह है कि यह शिवलिंग हर मौसम में अपना रंग और आकृति बदलता है, जो भक्तों को एक दिव्य संकेत लगता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति पूरे मन, संयम और श्रद्धा से इस यात्रा को करता है, उसे अपने जीवन में आध्यात्मिक दिशा मिलती है।

किन्नर कैलाश यात्रा सिर्फ़ एक पहाड़ पर चढ़ने की बात नहीं है , बल्कि यह शारीरक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से खुद को परखने की यात्रा भी है। यहाँ हर कदम पर प्रकृति की सुंदरता, शक्ति और एक दिव्य ऊर्जा का अनुभव सा होता है – तेज़ हवाएँ और दूर-दूर तक सिर्फ शांति या फिर हर – हर महादेव के जयकारे ।

यात्रा की विशेषताएँ
जरूरी सामानट्रेक का लेवल: कठिन (Advanced level trek)
कुल दूरी: लगभग 24–28 किमी
सर्वश्रेष्ठ समय: जुलाई से सितंबर
जरूरी परमिट: भारतीय नागरिकों को भी ID के साथ परमिट लेना होता है (विदेशियों को विशेष अनुमति चाहिए)
जरूरी सामान
ऊनी कपड़े, ट्रेकिंग शूज़, वॉटरप्रूफ जैकेट
वॉटर बॉटल, ग्लूकोज़, स्नैक्स
टॉर्च, सनस्क्रीन, सनग्लासेस
जरूरी दवाइयाँ, कैमरा

यात्रा कैसे करें
किन्नर कैलाश यात्रा आप स्वयं तब ही कर सकते जब आपको पहले से पर्वतीय भ्रमण करने का अच्छा अनुभव हो , अगर अनुभव नहीं है तो अकेले कभी न जाएँ। अगर आप किन्नर कैलाश यात्रा का पैकेज लेना चाहते है तो आप +91-8923-888-618 नंबर पर व्हाट्सप्प या अन्य माध्यम से संपर्क कर सकते है।
Day 1: दिल्ली / चंडीगढ़ से तंगलिंग गाँव तक यात्रा
सुबह जल्दी रवाना होकर किन्नौर के तंगलिंग गाँव पहुँचते हैं। यह यात्रा 12–15 घंटे की लंबी ड्राइव होती है, लेकिन सतलुज नदी और पहाड़ों के सुंदर नज़ारे रास्ते भर मंत्रमुग्ध करते हैं।
रात्रि विश्राम: होमस्टे
Day 2: तंगलिंग गाँव से बेस कैंप तक ट्रेक
लगभग 6–7 घंटे की चढ़ाई के बाद आप बेस कैंप पहुँचते हैं, जो देवदार और भोजपत्र के पेड़ों से घिरा हुआ होता है। यहाँ का वातावरण पूरी तरह शांत और आध्यात्मिक होता है।
ऊँचाई: लगभग 3,600 मीटर / 11,811 फीट
रात्रि विश्राम: कैंप
Day 3: बेस कैंप से किन्नर कैलाश शिवलिंग तक और वापसी
इस दिन की चढ़ाई सबसे कठिन होती है। बर्फीले रास्तों और पत्थरीली चढ़ाई के बीच, अंत में जब आप किन्नर कैलाश शिवलिंग के सामने पहुँचते हैं — तो यह एक अविस्मरणीय क्षण बन जाता है।
शिवलिंग की ऊँचाई: लगभग 4,800 मीटर / 15,748 फीट
दर्शन के बाद बेस कैंप लौटना
Day 4: बेस कैंप से तंगलिंग गाँव वापसी
उतराई अपेक्षाकृत आसान होती है लेकिन सतर्क रहना जरूरी है। यह दिन विश्राम और अनुभवों को आत्मसात करने का होता है।
रात्रि विश्राम: तंगलिंग गाँव
Day 5: तंगलिंग से दिल्ली / चंडीगढ़ वापसी
सुबह प्रस्थान कर दिल्ली या चंडीगढ़ के लिए वापसी।

मेरा अनुभव
किन्नर कैलाश यात्रा अपने आप मैं एक अलग ही अनुभव है, सबसे पहले तो तंगलिंग तक पहुंचने का रोमांच, फिर शाम या रात तक पहुंच कर वहां के होमस्टे में रुक कर वहां की वादियों को, ठंडी और तेज हवाओ को महसूस करना और सबसे ख़ास तो सेब के पेड़ जो तंगलिंग की शुरुवात से ही देखने को मिल जाते है और बेस कैंप के आधे रस्ते तक हमारे साथ ही रहते है।
तंगलिंग में रात रुकने के बाद जब अगले दिन जब ट्रेक की शुरुवात होती है, तो खूबसूरत सी सुबह में हम सेब के पेड़ो से भरे हुए जंगल से को पार कर के खुली ऊँची वादियों में पहुंचते है। जब में गया था तब सौभाग्य से अपने को सबसे बडिया कैम्पसाइट मिली थी रुकने को, वहां से नज़ारे तो क्या ही कहने। निचे की तरफ खुली वादियां और ऊपर की तरफ दूर दूर तक फैली हिमालय पर्वत श्रंखला और बीच में बैठे बाबा कैलाश।
आधार शिविर पर आने की थंकान यहाँ के नज़रो को देख कर ही दूर हो जाती है। रात का खाना खाने के बाद योजना तो सुबह 2-3 बजे निकलने की होती है लेकिन सारी योजना मौसम ऊपर निर्भर करती है। मौसम विभाग से हमारे समय तो यात्रा रुकवा दी गयी थी हलाकि मौसम सब ठीक रहा था तो दुपहर 12 – 1 बजे जाकर हमने यात्रा शुरू की थी, और बेस कैंप से जब हम बाबा कैलाश के दर्शन के लिए गए थे तब कुछ ही दुरी पर ग्लेशियर आ गया था उसको पार करने के बाद कुछ ही दुरी पर गणेश गुफा आती है यहाँ पर कुछ आर्मी के और फारेस्ट के जवान व्यवस्था सम्हालते है, यहाँ कुछ देर आराम करने के बाद फिर बड़े बड़े मॉल्डर्स को पार करते हुए आगे बढ़ते चलना और फिर काफी हद तक खड़ी चढ़ाई, कभी बड़े-बड़े पथरो के ऊपर से जाना तो कभी उनके निचे से, तो कहीं सीधा खड़ी चढ़ाई पर रस्सी पकड़ के चढ़ना।
कुछ लोग इस खड़ी चढ़ाई से पहले ही हार जाते है , कुछ लोग आधी कड़ी चढ़ाई से ही वापिस हो जाते है और जिनको बाबा दर्शन देना चाहते है बस वो ही लोग ऊपर तक जाने की हिम्मत बना पाते है और ऊपर पहुंच कर जब बाबा के दर्शन होते है तब तो एक अलग ही ख़ुशी मिलती है। ज्यादा देर तक रुकना ठीक नहीं होता क्यूंकि वापिस भी आना होता है मौसम बहुत जल्दी बदलता है , अब हमने यात्रा ही देर से शुरू करी थी तो शाम तो हमें यहाँ आते समय तक ही होने वाली थी और वापिस आधार शिविर आने तक हमे रात के 12 बज गये थे, क्यूंकि उतरने में ज्यादा सावधानी रखनी पड़ती है और समय भी ज्यादा लगता है।

निष्कर्ष
कुल मिलाकर यात्रा बहुत ही रोमांचक और यादगार रही, सेब के इतने सारे पेड़ खुली वादियां और बाबा कैलाश के दर्शन और देहरादून से तंगलिंग तक का बाइक का सफर, मेरी यादों में काफी अच्छी जगह बना चूका है। अगर आप भी यात्रा करना चाहते है तो अच्छे अनुभव के लिए , यात्रा को यादगार बनाने के लिए आप +91-8923-888-618 नंबर पर व्हाट्सप्प या अन्य माध्यम से संपर्क कर सकते है।