मंदिर परिसर में देवी गंगा का एक मुख्य मंदिर और भगीरथ शिला है, कहा जाता है की राजा भगीरथ ने यहीं पर भगवान शिव का ध्यान किया था। गंगा नदी का उद्गम गंगोत्री ग्लेशियर “गौमुख” में स्थित है जो गंगोत्री से 19 किमी की दूरी पर है। “भागीरथी नदी” गंगा नदी की मुख्य धारा है, जो गौमुख से निकलती है और गंगोत्री होते हुए देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिल जाती है। देवप्रयाग में अलकनन्दा और भागीरथी के संगम से ही गंगा नदी मुख्य रूप से प्रारम्भ होती है और आगे ऋषिकेश, हरिद्वार होते हुये उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर समुन्द्र में मिल जाती है।
पौराणिक कथाओ के अनुसार, “भागीरथी” नाम “भागीरथ” के कारण रखा गया। भगीरथ प्राचीन भारत के एक राजा थे और वह सूर्य वंश के महान राजा सगर के वंशज और भगवान राम के पूर्वजों में से एक थे। भगीरथ ने अपने पूर्वजो को ऋषि कपिला के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए, हिमालय में तपस्या करी थी। अपने गुरु त्रिशला की सलाह पर, उन्होंने देवी गंगा को प्रसन्न करने के लिए सालो तक तपस्या की, भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर, देवी गंगा ने भगीरथ से कहा कि अगर वह स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरती हैं, तो उनके वेग की शक्ति को सम्हालना मुश्किल होगा, सभी जगह जल भराव हो जायेगा। तो देवी गंगा ने भगीरथ को भगवान शिव से सहायता लेने के लिए कहा। उनके अतिरिक्त कोई भी उनके वेग की शक्ति को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं था । तब भगीरथ ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया, जिससे अंततः देवी गंगा का नदी के रूप में अवतरण हुआ।
आस-पास देखने की जगह
पांडव गुफा, गंगोत्री से 1.5 किमी की दूरी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि पांडवो ने कैलाश जाते समय यहाँ ध्यान लगाया था। पांडव गुफा तक पैदल ट्रेक कर के ही जाना पड़ता है।
गोमुख, जिसे “गोमुखी” के नाम से भी जाना जाता है, यह गंगोत्री हिमनद का अंतिम छोर है, जहाँ से भागीरथी नदी आरम्भ होती है। गौंमुख समुन्द्र ताल से लग-भग 4,023 मीटर (13,200 फुट) की ऊंचाई पर स्थित और गंगोत्री नगर से लगभग 19 किमी दूर एक पवित्र हिन्दू तीर्थ-स्थान है। यह रोमांच पसंद पर्यटकों के लिए भी एक लोकप्रिय स्थान है।
केदारताल, उत्तराखंड में सबसे खूबसूरत झीलों में से एक है (जिसे भगवान् शिव की झील भी कहा जाता है)। यह हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र में समुद्र तल से लग-भग 4,750 मीटर (15,580 फीट) की ऊंचाई पर और गंगोत्री से लग-भग 18 किमी की दूरी पर स्थित है। यह स्थान निश्चित रूप से साहसिक और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थान है। मृगुपंथ और थलयसागर पर्वत की बर्फ पिघलने से यह केदारताल का रूप लेती है। केदारताल से निकलती धारा को केदारगंगा कहा जाता है जो भागीरथी की एक सहायक नदी है। कहीं शांत और कहीं उफनती यह नदी विशाल पत्थरों और चट्टानों के बीच से अपना रास्ता बनाती है।
नेलोंग घाटी जो गंगोत्री से लगभग 34 किलोमीटर दूर है और लगभग 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। नेलोंग घाटी, लाहौल-स्पीति और लेह-लद्दाख के जैसे माहौल वाली जगह है। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले यह भारत-तिब्बत व्यापार के लिए प्रमुख मार्ग था, लेकिन युद्ध के बाद से घाटी को नागरिकों के लिए बंद कर दिया गया था। वर्ष 2015 में इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया था, तब से यह साहसिक प्रेमियों के लिए अत्यंत पसंदीदा जगह बन गयी है। इस रस्ते पर आने जाने के लिए केवल दिन में अनुमति मिलती है।
तपोवन, परंपरागत रूप से भारत में कोई भी स्थान जहां कोई तपस्या या आध्यात्मिक साधना में लगा होता है, उसे तपोवन के रूप में जाना जा सकता है। जैसे ऋषिकेश के आसपास उत्तरी गंगा नदी का पश्चिमी तट, जिसका उपयोग साधुओं द्वारा काफी किया गया है कि पूरे क्षेत्र को तपोवन के रूप में जाना जाने लगा। भारत में सबसे प्रसिद्ध तपोवन, गंगोत्री ग्लेशियर के ऊपर का क्षेत्र कहलाता है। अनुकूल मौसम के दौरान शिवलिंग शिखर की तलहटी में लगभग 4,463 मीटर (14640 फीट) की ऊंचाई पर कई साधु गुफाओं, झोपड़ियों आदि में रहते है और अब यह एक ट्रेकिंग गंतव्य भी बन गया है। यहाँ की ट्रेकिंग आमतौर पर गोमुख से शुरू होती है। “तपोवन क्षेत्र” शिवलिंग शिखर, भागीरथी चोटी आदि सहित कई पर्वतारोहण अभियानों के लिए आधार शिविर है। तपोवन क्षेत्र घास के मैदानों, नदियों और फूलों से भरा है, तपोवन के पास नंदनवन नाम का एक स्थान भी है, और नंदनवन भी ट्रेकर्स और तीर्थयात्रियों द्वारा ट्रेक किया जाता है।
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